वृंदावन की विधवा माताओं के जीवन में लौटी दीपावली की रोशनी



मथुरा : कभी जिनके जीवन से दीपावली की रोशनी छिन गई थी, वही माताएं वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मुस्कान और उल्लास से जगमगा उठीं। बुधवार की शाम, जब सैकड़ों विधवा माताएं सफेद साड़ियों में सजीं, तो उनके चेहरे दीयों की लौ में ऐसे चमक रहे थे, मानो वर्षों का अंधकार मिट गया हो।

अंग्रेजी में पढ़ें : Widowed mothers in Vrindavan celebrate Diwali with joy

वृंदावन के आश्रमों में रहने वाली ये माताएं अधिकतर पश्चिम बंगाल से आईं हैं और वहां कभी समाज द्वारा 'अशुभ' मानी जाती थीं। त्योहारों से उनका कोई नाता नहीं था। लेकिन, इस दीपावली पर, हर बार की तरह, सुलभ इंटरनेशनल के प्रयासों ने सब कुछ बदल दिया है। इस दौरान गोपीनाथ मंदिर प्रेम, सम्मान और अपनत्व का केंद्र बन गया।

सुलभ इंटरनेशनल की कार्यकारी संयोजक नित्या पाठक ने बताया, “हमारा उद्देश्य इन माताओं को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना है। अब इन्हें छिपाने की नहीं बल्कि सम्मान से जीने की जरूरत है।” उनकी आवाज में संवेदना थी और आंखों में गर्व की चमक। जैसे-जैसे शाम ढली, मंदिर में दीपों की कतारें टिमटिमाने लगीं। हर दीया, हर मुस्कान एक नई कहानी कह रहा था, दर्द से मुक्ति की, अपनेपन की और उस सशक्तिकरण की, जो करुणा से जन्म लेता है।

मां देवी घोष ने दीयों की रोशनी में धीमी मुस्कान के साथ कहा, “पहले हम दीपावली बस दूर से देखते थे। अब लगता है जैसे जीवन खुद हमारे पास लौट आया है।” उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे, और उस भाव में एक पूरी पीढ़ी की मुक्ति छिपी थी।

यह परिवर्तन अचानक नहीं आया है। साल 2012 से, सुलभ आंदोलन के संस्थापक स्व. डॉ. बिंदेश्वर पाठक की करुणामयी दृष्टि ने वृंदावन और वाराणसी की सैकड़ों विधवा माताओं को न केवल आश्रय दिया, बल्कि सम्मान और पहचान भी लौटाई। संगठन इन माताओं को स्वास्थ्य सुविधा, प्रशिक्षण और आर्थिक सहयोग प्रदान करता है, ताकि वे जीवन के अंतिम पड़ाव में किसी पर निर्भर नहीं बल्कि आत्मस्वाभिमानी बन सकें।




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