यमुना किनारा रोड स्थित प्राचीन बल्लभ कुल संप्रदाय के पुष्टिमार्गीय मंदिर में ठाकुर श्री मथुराधीश जी महाराज चंद्र ग्रहण के दौरान भक्तों को दर्शन देते रहे। ध्यान रहे, सभी धार्मिक कार्य और मंदिरों के पट ग्रहण की अवधि में बंद या स्थगित रहते हैं। लेकिन, श्री मथुराधीश जी भय से मुक्ति के लिए, और कीर्तन, सत्संग के लिए ग्रहण काल में पूरे समय जगे रहते हैं ताकि भक्तों को कष्ट न हो।
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। बाल स्वरूप में विराजे ठाकुरजी कहीं डर न जाएं, इसलिए भजन कीर्तन से उन्हें रिझाया जाता है। चंद्र ग्रहण (या सूर्य ग्रहण) के दौरान पुष्टिमार्गी मंदिरों में, विशेष रूप से नाथद्वारा के श्री नाथ जी मंदिर में, ठाकुर श्री नाथ जी को जगा दिया जाता है और वह जगे रहते हैं। पुष्टिमार्ग की परंपरा के अनुसार, ग्रहण से पहले उनको जगाया जाता है और उन्हें धोती तथा उपर्णा पहनाया जाता है। यदि ग्रहण श्रृंगार के बाद होता है, तो उनका पाग और आभूषण हटा दिए जाते हैं। ग्रहण की अवधि में मंदिर खुला रहता है, और भक्तों को लगभग तीन घंटे तक निर्बाध दर्शन का अवसर मिलता है, जो सामान्य दिनों में दुर्लभ होता है। इस दौरान कीर्तन गाए जाते हैं और भक्त श्री नाथ जी के समक्ष बैठकर उनका नाम जपते हैं।
ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान कराया जाता है, श्रम-भोग चढ़ाया जाता है, और फिर समयानुसार उन्हें शैय्या पर सुलाया जाता है। ग्रहण के दौरान कोई भोजन या जल ग्रहण नहीं किया जाता है। दान-पुण्य भी किया जाता है। यह परंपरा ग्रहण को एक आध्यात्मिक अवसर के रूप में देखती है, जहां ठाकुरजी को संन्यासी रूप में सजाया जाता है।
मान्यता है कि ग्रहण के दौरान कई ग्रहों का संघर्ष होता है जिससे नकारात्मक ऊर्जा निकलती है। दुष्प्रभावों से सुरक्षित रहने के लिए दान, पुण्य, कीर्तन आदि में भक्तजन शामिल होते हैं। एक ज़माने में यमुना किनारा रोड पर घाटों और मंदिरों की लंबी श्रृंखला थी जिसे आपातकाल के दौरान संजय गांधी के निर्देश पर चौपाटी बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया गया। हुआ उल्टा, एक जीवंत नदी संस्कृति चौपट हो गई और यमुना की दुर्दशा की दास्तान शुरू हो गई। ग्रहण के समय लाइन से बैठे भिखारियों को अनाज, वस्त्र या पैसे दान दिए जाते थे। ब्रह्मांड की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती थी। ग्रहण समाप्ति पर घर आंगन, मंदिर, सब कायदे से धुलते थे, सभी स्नान करके ही दैनिक दिनचर्या में लौटते थे।

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