स्वर्गीय लाला बांके लाल माहेश्वरी, श्री नाथ जी निःशुल्क जल सेवा के संस्थापक, भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी सादगी, सेवा, और विनम्रता की गूंज आगरा की गलियों में हमेशा जीवित रहेगी। जहां आज समाज सेवा में अहंकार और दिखावा आम हो गया है, वहीं बांके लाल जी सौम्यता और उदारता के जीवंत प्रतीक थे। उनकी प्रेरणा हमें जोश और समर्पण से भर देती है।
मेरा उनसे परिचय 1988 की गर्मियों में हुआ, जब डॉक्टर सोप के मालिक लाला पदम चंद जैन ने मुझे राजा मंडी स्टेशन पर उनसे मिलवाया। यह मुलाकात उस भयंकर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस रेल दुर्घटना के कुछ महीनों बाद हुई, जिसमें बांके लाल जी ने घायलों और यात्रियों की सेवा के लिए जी-जान लगाई थी। दुर्घटना के बाद बची बाल्टियों, गिलासों और लोटों को देखकर उनके मन में विचार आया—क्यों न गर्मियों में स्टेशन पर ठंडे पानी की प्याऊ लगाई जाए? यहीं से श्री नाथ जी निःशुल्क जल सेवा की नींव पड़ी।
Read in English: Shri Nath Ji Jal Sewa and immortal legacy of Banke Lal Maheshwari
उस दौर में, जब प्लास्टिक की बोतलें और पाउच अस्तित्व में नहीं थे, लोग बिना हिचक प्याऊ पर मिट्टी के घड़ों से पानी पीते थे। फाइन आर्ट स्टूडियो के बाहर लगी प्याऊ पर बड़े-बड़े लोग कार से उतरकर पानी पीने रुकते। धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता गया और सौ प्याऊओं तक फैल गया। सर्दियों में रैन बसेरे शुरू किए गए, जिनका उद्घाटन डॉ. एमसी गुप्ता जैसे सम्मानित लोग करते थे। इस लंबी सेवा यात्रा में शहर के हर क्षेत्र से माहेश्वरी जी को सम्मान और मदद मिली। हमारी टीम के सभी सदस्य डॉ राजन किशोर, विनय पालीवाल, गोविंद खंडेलवाल, श्रवण कुमार, गोवर्धन होटल वाले सुरेंद्र शर्मा, और खासतौर पर मीडिया बंधु, निकटता से जुड़े रहे। मुझे तो उनका बड़े भाई, मार्ग दर्शक के रूप में विशेष आशीर्वाद मिला। उनका मंत्र था कि हर दिन, एक नेक काम, और वाणी में अमृत घोलो।
बांके लाल जी का जीवन सच्ची मानवता का दर्पण था। चिलचिलाती गर्मी हो या कड़कड़ाती सर्दी, उनकी सेवा कभी नहीं रुकी। 45 डिग्री की तपती धूप में भी वह और उनकी टीम हर प्यासे तक शुद्ध और ठंडा पानी पहुंचाते। तीज-त्योहारों में भी यह सेवा निर्बाध चलती। वह कहा करते थे कि प्यासा इंसान भगवान का रूप है, और उसे पानी पिलाना सबसे बड़ा धर्म। उनकी आंखों में सेवा की चमक और चेहरे पर सदा खिली मुस्कान हर किसी को प्रभावित करती थी। न दिखावे की चाह, न प्रसिद्धि की लालसा—उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था किसी प्यासे के चेहरे पर राहत और आशीर्वाद।
श्री नाथ जी निःशुल्क जल सेवा केवल पानी पिलाने तक सीमित नहीं थी बल्कि यह समाज में परोपकार की भावना को जगाने वाला एक आंदोलन बन गया। बांके लाल जी की प्रेरणा से अनगिनत युवा और समाजसेवी इस अभियान से जुड़े और सेवा का व्रत अपनाया। यमुना भक्त और वैष्णव होने के नाते, वह यमुना रिवर कनेक्ट अभियान से भी गहरे जुड़े रहे। उनकी सामाजिक गतिविधियों की गूंज आगरा से निकलकर दूर-दूर तक फैली, और समाचार पत्रों में उनकी सेवा की कहानियां छपती रहीं।
बांके लाल जी का निधन आगरा के लिए एक अपूर्णीय क्षति है। उनके जाने से समाजसेवा की दुनिया में एक ऐसा शून्य पैदा हुआ है, जिसे भरना असंभव है। फिर भी, श्री नाथ जी निःशुल्क जल सेवा उनकी जीवित स्मृति है, जो आने वाली पीढ़ियों को मानवता का पाठ पढ़ाती रहेगी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बड़े कार्य के लिए बड़े पद या संसाधनों की नहीं, बल्कि बड़े हृदय की जरूरत होती है।
हमारी श्रद्धांजलि बांके लाल जी के चरणों में समर्पित है। वह भले ही भौतिक रूप से हमारे बीच न हों, पर उनकी सेवा की गंगा अनवरत बहती रहेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और हमें उनके पदचिह्नों पर चलने की शक्ति। यही उनकी सच्ची स्मृति और सम्मान होगा।
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