“काव्य भाषा का संगीत है और संगीत ध्वनि का काव्य”



प्रख्यात कवि, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने कहा कि काव्य भाषा का संगीत है और संगीत ध्वनि का काव्य है। वह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में विशेष रूप से चयनित संगीत की प्रस्तुति के भारत के पहले उत्सव और वैश्विक सम्मेलन साउंडस्केप्स ऑफ़ इंडिया के दूसरे सीज़न के भव्य उद्घाटन के दौरान आयोजित एक प्रेसवार्ता में बोल रहे थे।

अख्तर ने काव्यात्मक लय और संगीत में सुरों के तालमेल के बीच समानताएं दर्शाते हुए इस विचार को पाइथागोरस के अनुपात और संतुलन के दर्शन से भी जोड़ा। उन्होंने बताया कि काव्य और संगीत दोनों ही उत्तम छन्द, लय और अनुनाद पर आधारित होते हैं और जब ये आपस में मिल जाते हैं तो यह अद्भुत संयोजन बन जाता है जो भाषाई और सांस्कृतिक सीमाओं को पार कर लोगों के दिलों तक पहुंच जाता है।

Read in English: “Poetry is the music of language, and music is the poetry of Sound”

10 से 12 नवंबर तक चले इस तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसाइटी लिमिटेड ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और म्यूज़िकनेक्ट इंडिया के सहयोग से किया था।

जावेद अख्तर ने कार्यक्रम के पहले दिन  गीत लेखन पर 'गीत लेखन की कला' शीर्षक से एक विशेष सत्र का भी संचालन किया। उन्होंने इस सत्र में कविता, संगीत और रचनात्मकता के बीच गहरे अंतर्संबंधों की पड़ताल की।

अख्तर ने चर्चा के दौरान आधुनिक काव्य प्रवृत्तियों पर स्पष्ट रूप से अपनी तीखी राय व्यक्त की। उन्होंने गद्य के रूप में कविता को ‘छलावा’ और ‘प्रवंचना’ करार दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि धुन और लय को हटा देने से गद्य के रूप में कविता काव्य का भाव खो देती है। उन्होंने कहा, "यदि यह काव्यात्मक गद्य होता तो इसे उचित ठहराया जा सकता था, लेकिन गद्य में कविता पद्य को परिभाषित करने वाली धुन और लय को छीन लेती है।" उनके लिए सच्चे काव्य का प्रमाण उसके माधुर्य में निहित है।

अख्तर के अनुसार, कविता ऐसे प्रतीक और अर्थ विकसित करती है जो उन पाठकों से भी जुड़ जाते हैं जो इस पृष्ठभूमि के न हों, बशर्ते उसमें अनुशासन और लय बनी रहे। उन्होंने कहा कि कविता लिखने के लिए कठिन तपस्या और विनम्रता की आवश्यकता होती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हर कवि को कविता पढ़नी चाहिए, और लिखने से पहले लय, ध्वनि और ध्वन्यात्मकता को गहराई से समझना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि शब्दों का अपना जीवन होता है जो अवचेतन मन में संबंध और प्रभाव विकसित करता है। यह वास्तविक रचना की केंद्रीय प्रक्रिया है।

अख्तर ने फ़िल्मी गीतों की गुणवत्ता में गिरावट के बारे में पूछे जाने पर कहा कि समाज स्वयं अपनी रचनात्मक गिरावट को दर्शाता है। उन्होंने कहा, "आप मुझे समाज के बारे में बताएं, और मैं आपको उसके सौंदर्यशास्त्र के बारे में बताऊंगा।" उन्होंने कहा कि शिक्षा का ध्यान समझ के बजाय रोज़गार पर केंद्रित होने के कारण साहित्य और भाषा की गहराई कम हो गई है। उन्होंने प्रश्न उठाया कि "जब सीखने का उद्देश्य कमाई करना हो, तो उसमें महाकाव्य या काव्यात्मक अभिव्यक्ति की गंभीरता कैसे आ सकती है?"

अख्तर ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि "एआई एक कुशल उपकरण के रूप में काम कर सकता है लेकिन रचनात्मक नहीं हो सकता।" उन्होंने कहा, "कला का जन्म चेतन और अवचेतन मन के बीच की निर्जनता में होता है।" उन्होंने कहा कि कला का प्रत्येक रूप भावना, कल्पना, उत्कंठा और शिल्प कौशल का मिश्रण है। ये ऐसे गुण हैं जिन्हें कोई भी यांत्रिक प्रक्रिया नहीं दोहरा सकती है। शिक्षा और सांस्कृतिक समझ पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में कला का मूल्यांकन करने की क्षमता कम होती जा रही है। उन्होंने कहा, "अपने जुनून का अनुसरण करना समुद्र की ओर बहने वाली नदी के समान है, जो अपना रास्ता स्वयं खोज लेती है।"

अख्तर ने संवाददाता सम्मेलन के दौरान भारत को ‘संगीत का देश’ बताया और इसकी विविधतापूर्ण और समृद्ध संगीत परंपराओं का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में संगीत के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं जिनका अन्वेषण किया जाना अभी बाकी है।




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