आगरा : साहित्यिक संस्था ‘चर्वणा’ के तत्वावधान में एक काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी में कवि शलभ भारती ने काव्य-पाठ करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का संदेश दिया। "मन का सागर-मंथन करले, पीले फिर तीक्ष्ण गरल खारा। बन जा, विषपायी नीलकण्ठ, हंस कर जीवन जी ले सारा। अन्त में मिलेगा अमृत-घट, निर्मल-निर्मल, प्यारा-प्यारा। गा गीत अनोखा, बन जोगी, लेकर हाथों में इकतारा।"
मुख्य अतिथि विद्वान् साहित्यकार डॉ. आरएस तिवारी 'शिखरेश' की पंक्तियों ने सबका दिल छू लिया। "यदि सच में, मैं सागर हूं तो; पी लो तुम सारा जल मेरा; फिर नहीं रहेगा कुछ भी मेरा-तेरा; प्यास तुम्हारी बुझ जाएगी; मर्यादा मेरी रह जाएगी…!"
कार्यक्रम संयोजक साहित्यकार शीलेंद्र कुमार वशिष्ठ ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए सर्वशक्तिमान को नमन किया। "पर्वत घाटी या जंगल में। बहते निर्झर की कल-कल में। छिप-छिपकर तू ही मुसकाता। ग्रह-नक्षत्रों की हलचल में...।"
गीतकार परमानंद शर्मा ने जीवन के असल दर्शन को रेखांकित करते हुए कहा, "सुख-दुख, जीवन-मरण, लगा है धूप-छांव का फेरा। जितने दिन जैसी कट जाए, उठ जाएगा डेरा। इक दिन गाड़ी हांक चलेगी इस जग से बंजारिन...।"
संजय गुप्त ने बुराइयों का खात्मा करने के लिए भगवान कृष्ण को पुकारते हुए कहा, "कंसत्व छा रहा समाज में, चीर हरण हो रहे दिन रात। दुराचारियों का संहार करने, फिर से आ जाओ नंदलाल...।"
कवि रामेंद्र शर्मा 'रवि', कुमार ललित, हास्य कवि डॉ. अलकेश सिंह, डॉ. संजीव चौहान 'शारिक', डॉ. उदयवीर सिंह ने भी अपनी कविताओं का सरस काव्यपाठ किया।
गोष्ठी का संचालन प्रकाश गुप्ता 'बेबाक' ने किया। ममता वशिष्ठ ने व्यवस्थाएं संभालीं।
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